Wednesday, October 13, 2010

शिवताण्डवस्तोत्रम

शिवताण्डवस्तोत्रम

जटाकटा हंसभ्रम भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमोर्धनि
धमद्दगद्द गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोर चन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षण ममं

धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलास बंधुबंधुरा
स्फुरद्वगंत संतति प्रमोद मानमानसे
कृपाकटाक्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि

जटा भुजंग पिंगल स्फुत्फणामणिप्रभा
कदंबकुंकुम द्रवप्रलित्प दिग्वधूमुखे
मंदाध सिंधु रस्फुरत्वगोत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदाम्दाभूतं विभर्तु भूतबतर्रि

सहस्त्र लोचन प्रभृत्य शेष लेखशेखर
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांधिपीठम
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूकः
श्रियैचिरायजायतां चकोरबन्धुशेखरः

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिंगभा
नीपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकम
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालभस्तु नः

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्जवल
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्भम

नवीनमेघमण्डलोनिरुद्धदुर्धरस्फुर
त्कुहूनिशीधनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृतिसिन्धुरः
कलानिधानबंधुरः क्षियं जगद्धरंधरः

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम
सारच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे

जयत्वदभ्रमभ्रमभ्द्रुभुजंगमस्फुर
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभलहृव्यवाट
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंतुंगमडल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचंडतांडवः शिवः

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकस्त्रजो
गर्रिष्ठरत्लोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम

कदा निलिम्पनिर्झरीलिकुंजकोटरे वसन
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थलमंजलिं वहन
विलोललोललोचनो ललाभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन कदा सुखी भवाम्यहम

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम

पूजावसानसमये देशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे
तस्या स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां
तस्या स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंग युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददति शम्भुः

इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम

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