आज सिन्धु में ज्वर उठा है, नागपति फिर ललकार उठा है,
कुरुक्षेत्र के कण कण से फिर, पांचजन्य हुंकार उठा है,
शत शत आघातों को सहकर, जीवीत हिंदुस्तान हमारा,
जाग के मस्तिषक पर रोली सा, शोभित हिंदुस्तान हमारा,
दुनिया का इतिहास पूछता, रोम कहाँ , यूनान कहाँ है?
घर घर में शुभ अग्नी जलाता, वह उन्नत इरान कहाँ है?
दीप भुजे पश्चिप गगन के, वयापट हुआ बर्बर अँधियारा,
किन्तु चीर कर तम की छाती, चमका हिंदुस्तान हमारा।
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